क्षण क्षण को जो गिनें पलक पर उनका आभार जताएंगे।
बीत रही है शरद की अवधि,आएगी नव वर्ष पुन:।
पल्लवित होंगे फिर पुण्य वृक्ष, हर्षाएगी नव वर्ष पुन:।
पुण्य ज्योति अब ऊर्ध्वाधर हो धवल सूर्य तक जाएगी।
दिव्य प्रशस्ति धवल पंथ पर खुशियों को बरसाएगी।
धरती अम्बर चांँद सितारे गंगा यमुना की जलधारें।
स्वर्णिम पानी सूर्य बिखेरे खिलती जाए दिव्य बहारें।
एक बूंद को प्यासा चातक सौ बूंदों से प्यास बुझाओ।
पुण्य धरा है भारत की हे बादल अमृत जल बरसाओ।
चौंसठ लाख जीव जंतु हित लाएगी उत्कर्ष पुन:।
बीत रही है शरद की अवधि,आएगी नव वर्ष पुन:।
पल्लवित होंगे फिर पुण्य वृक्ष, हर्षाएगी नव वर्ष पुन:।
बत्तीस योगन को सिद्ध किया विक्रम बेतालों का स्वामी।
महाकाल का अंश स्वयं था छप्पन कालों का स्वामी।
किसी काल में उनकी गणना नहीं नकारी जाएगी।
तीनो लोकों में वैदिक है वही दुलारी जाएगी।
क्षण क्षण को जो गिने पलक पर उनका आभार जताएंगे।
वो वेदों में हो वर्णित हम वह नववर्ष मनाएंगे।
लाएंगे खुशियों को आँगन, मन चितवन में हर्ष पुन:।
बीत रही है शरद की अवधि,आएगी नव वर्ष पुन:।
पल्लवित होंगे फिर पुण्य वृक्ष, हर्षाएगी नव वर्ष पुन:।
©®दीपक झा "रुद्रा"
Rakash
19-Jan-2022 04:59 PM
nice
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Punam verma
19-Jan-2022 04:20 PM
Nice
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Swati chourasia
19-Jan-2022 03:16 PM
वाह बहुत ही खूबसूरत रचना 👌👌👌👌👌👌
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